संसाधन और मनुष्य (Resources and Humans) .
लेखक - मनोज कुमार जाटवर अतिरिक्त संसाधन की अधिकता मनुष्य अस्तित्व के लिए कितना लाभदायक होगा? अतिरिक्त संसाधन अधिकता मनुष्य अस्तित्व हेतु है या अस्तित्व विहीन हेतु न्यौता है? संसाधन सार्वभौम सर्वोपरि है लेकिन समाज और स्वार्थ वास्तविक है?( Resources are universal, but society and selfishness is real?.) - कहा जाता है कि खाली पेट बुद्धि का विकास असंभव है लेकिन पेट भरने के बाद भी बुद्धि का विकास त्वरित नही होता बल्कि आरंभ में विचलन की स्थिति से अवगत होकर इस चरण(बुद्धि का विकास) में प्रवेश करते हैं। मानव इतिहास की केवल दो विशेषता है - पहला यह कि संसार प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है मनुष्य उसे जीवन निर्वाह हेतु प्राप्त करने की अति विशिष्ट तरीकों का उपयोग करता है जो प्रत्यक्ष है तथा दूसरा यह कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है बहुत सारे मनुष्य के मानवीय मूल्यों को प्रकट कर एक समाज का निर्माण होता है इसका उद्देश्य भौतिक उत्पादन को सहयोगात्मक रूप से प्राप्त करना है ,अर्थात हर तरीके से मनुष्य की औपचारिकता संसाधन प्राप्ति के तरीके हैं । समाज में मनुष्य भावनाओं से जुड़ा होता है और ...