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संसाधन और मनुष्य (Resources and Humans) .

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  लेखक - मनोज कुमार जाटवर  अतिरिक्त संसाधन की अधिकता मनुष्य अस्तित्व के लिए कितना लाभदायक होगा? अतिरिक्त संसाधन अधिकता मनुष्य अस्तित्व हेतु है या अस्तित्व विहीन हेतु न्यौता है? संसाधन सार्वभौम सर्वोपरि है लेकिन समाज और स्वार्थ वास्तविक है?( Resources are universal, but society and selfishness is real?.) -  कहा जाता है कि खाली पेट बुद्धि का विकास असंभव है लेकिन पेट भरने के बाद भी बुद्धि का विकास त्वरित नही होता बल्कि आरंभ में विचलन की स्थिति से अवगत होकर इस चरण(बुद्धि का विकास) में प्रवेश करते हैं। मानव इतिहास की केवल दो विशेषता है - पहला यह कि संसार प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है मनुष्य उसे जीवन निर्वाह हेतु प्राप्त करने की अति विशिष्ट तरीकों का उपयोग करता है जो प्रत्यक्ष है तथा दूसरा यह कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है बहुत सारे मनुष्य के मानवीय मूल्यों को प्रकट कर एक समाज का निर्माण होता है इसका उद्देश्य भौतिक उत्पादन को सहयोगात्मक रूप से प्राप्त करना है ,अर्थात हर तरीके से मनुष्य की औपचारिकता संसाधन प्राप्ति के तरीके हैं । समाज में मनुष्य भावनाओं से जुड़ा होता है और ...

भारतीय समाज में प्रतिष्ठा :-

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    मनोज कुमार जाटवर लेखक:- मनोज कुमार जाटवर . भारतीय समाज का भविष्य और प्रतिष्ठा पूंजी तय करती है : - यह विचार मेरे मन में घर कर गई थी कि आखिर यह समाज को किस रास्ते पर ले जायेगी या फिर क्या समाज इस स्थिति में कभी समाजवादी बन पाएगा क्या यह किसी भेदभाव से कम नही है ? लड़कों की जिंदगी से खिलवाड़ नही है? या केवल लड़की की स्वतंत्रता निजी जीवन का विषय है? आखिर व्यक्ति ही समाज है? और समाज ही देश तथा देश बराबर सबका है लेकिन फिर व्यक्तिगत असमानताएं क्यों?पता नही यह समस्या सारा संसार का है या केवल भारत का ही लेकिन यह कोई भेदभाव से कम नहीं है।यह भेदभाव सरकारी नौकरी या समाज में प्रतिष्ठा मुख्य कारण नही है बल्कि यह समस्या समाज द्वारा पैदा कर रहे युवाओं के जीवन के साथ भेदभाव से जुड़ा है जिसका परस्पर संबंध प्रत्येक युवाओं के साथ प्रत्येक लड़की का सह- संबंध है शारीरिक नही।                                     दरअसल भारत में प्रेम विवाह की मान्यता बहुत कम है ऐसे गांव अनेक है जहां प्रेम विवाह को असमाज...

गुरु घासीदास जी द्वारा प्रदत्त मानवीय मूल्यों की वर्तमान स्थिति

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  गुरु घासीदास जी द्वारा प्रदत्त मानवीय मूल्यों की वर्तमान स्थिति:- एक विवेचना By -मनोज कुमार जाटवर  imageresourse:pinterest यूरोप में पुनर्जागरण का अंतिम अवस्था और औद्योगिक क्रांति के शुरुआत का समय भारत में गुरु घासीदास के जन्म का समय था मृत्यु का निश्चित प्रमाण नहीं है लेकिन 1830-35 के आस पास का समय की मान्यता है क्योंकि इस तिथि के बाद से उनके पद चिन्हों का अस्तित्व देखने को नही मिलता यह समय फ्रांस में तृतीय क्रांति का समय था अर्थात उनके मृत्यु का समय। यूं तो भारत प्राचीन समय से दर्शन का गढ़ रहा है और दर्शन का संबंध भारत से बहुत पुराना रिश्ता रहा है और समय समय पर परिस्थितियों के अनुरूप महान दार्शनिकों का अस्तित्व आया। छत्तीसगढ़ में मानवीय मूल्यों की रक्षा का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ के महान समाज सुधारक और विचारक गुरु घासीदास जी ने एक सुदृढ़ समाज की संरचना और मानवीय मूल्यों के महत्व को बताया था अपने जीवन में ऐसे तथ्यों अथवा पदार्थों को अमल मत करो जिससे अमानवीयता को बढ़ावा मिले व असमाजिक परंपराओं का त्याग करने का संदेश दिया जिससे सामाजिक विकास सुनिश्चित हो सके। लेकिन वर्तमान...