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शिर्षक - मैं तुझे कफ़न भेजता हूँ ...

लेखक - मनोज कुमार जाटवर,   एक बात कहूं तेरी क्रुरता पर,  मै तूझे कफ़न भेजता हूँ ... मैने खबर सुना है उस मासूम की,  सिहर उठा तन मन और जमिर मेरा, आतिश से भरा हूँ पर बात है शक्ति विहिन की  पकड़ रखा है कानून ने हाथ मेरा, अमलन आज तू देश से विहिन होता, एक बात कहूंगा तेरी क्रुरता पर,  मै तूझे कफ़न भेजता हूँ ... कब तलक चलता रहेगा अदालत मे केस ऐसा  देश कि बेटियों से ही पुछो कैसा हो परिणाम तेरा,  और यकिन कर मेरा, वो कहेंगी  कि गोलियों की बौछार से हो न्याय तेरा,  पर इन्तिकाम,इब्रत से नहीं मीटेगी घटना ऐसी, हो नियम ऐसा जिससे कान्पे रूह तेरा ll  एक बात कहूं तेरी क्रुरता पर,  मै तूझे कफ़न भेजता हूँ ...

कैसे मनाऊं आज़ादी हर साल

कैसी आजादी है ये , जो तुम हर साल मनाते हो? कैसे मनाऊं आज़ादी हर साल, तुम्हे तुम्हारी आज़ादी मुबारक, मुझे आज़ादी अभी मिली नही, अभी तक आज़ाद देश में हमारे, बेटियां सुरक्षित मिली नहीं, आज़ादी के 78 साल बाद भी तुम्हारे, बेटियों को खुशियां मिली नहीं, तुम्हे तुम्हारी आज़ादी मुबारक मुझे आजादी अभी मिली नही वाचाती, निर्भया, हाथरस,RG kar बलात्कार , डरावनी है ये भयानक अत्याचार, NCRB की डाटा बताती है हाल हर दिन 87 बलात्कार से देश बेहाल, कैसे मनाऊं आजादी हर साल? तुम्हे तुम्हारी आज़ादी मुबारक मुझे आजादी अभी मिली नही... बरसों से है नारी पर मातम भारी, बलात्कारियों ने लांघ दी सरहदें सारी, देश के दुश्मन हैं ये बलात्कारी,, अब नही चलेगी बलात्कारियों की मर्जी, देश हमारा  मर्जी हमारी, बलात्कारियों की एक सजा हो जनहित मे जारि, सजा-ए-मौत,सजा-ए-मौत,सजा-ए-मौत...                                         ~ मनोज कुमार जाटवर